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यह कल्पना करना मुश्किल है कि एक समय था जब यह नदी और जंगल सूख चुके थे। कुओं में कटीली झाड़ियां उग आई थी। बरसात के पानी से जो थोड़ी बहुत फसल होती थी, उसमें लोगों को गुज़ारा करना मुश्किल हो रहा था। पैसों की कमी के चलते लोगों को गाय भैंस का चारा खरीदना भारी पड़ रहा था, इसीलिए वे उन्हें बेच कर बकरियां रखने लगे। वहीं रोज़ी रोटी के लिए लोगों को मजबूरन यहां से पलायन करना पड़ रहा था। लेकिन आज यह इलाका न केवल प्राकृतिक रूप से समृद्ध है बल्कि आर्थिक रूप से...
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आलू जो कि बेल पर उगता है, चावल को पानी में भिगोने के बाद कच्चा खाया जा सकता है, दलिया (फटा गेंहू) प्राकृतिक रूप से मीठा होता है। यह सब सुनने में भले ही अटपटा लगे। लेकिन हमारे किसान सदियों से यह सब उगाते आ रहे हैं। इनके अलावा, ऐसी बहुत सी फसलें हैं जो कि खासतौर पर बीमारी से निजात पाने में मदद करती हैं और जिन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। लाल चावल के बारे में आप क्या कहेंगे जिसे इसकी पौष्टिकता के चलते खासतौर पर गर्भवती...
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Tuesday, December 3, 2013
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नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ काम करने के मेरे निर्णय से बहुत से लोग आश्चर्यचकित थे। मध्य भारत के ग्रामीण इलाके में काम करके गर्मियों की छुट्टियां बिताने के मेरे फैसले पर दोस्तों और परिजनों ने सवाल उठाए। लेकिन आंदोलन को लेकर मेरे मन में जो जिज्ञासा थी, मैं उसे शांत करना चाहती थी। 90 के दशक में पैदा होने के चलते मैं और मेरे जैसे बहुत से लोग देश के उन पलों के साक्षी नहीं बन सके जब कार्यकर्ता पूरे साहस के साथ आंदोलन के साथ खड़े थे। हम जब पैदा हुए...
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विश्वव्यापीकरण के नक्शेकदम पर चलते हुए हम अपने शहरों को अगला शिंघाई और दुबई बनाने में जुटे हैं और इसके चलते हम अपनी मजबूत सांस्कृतिक पहचान पीछे छोड़ते जा रहे हैं। वास्तुकला में यह बदलाव परंपरागत, अनूठे और उस जगह की जलवायु के हिसाब से बने हुए से लेकर आधुनिक, नीरस और सामान्य घरों के रूप में पहले के मुकाबले अब तेजी से हो रहा है। उदाहरण के लिए अगर हम पहले के समय को देखें, जब आंख बंद करके दूसरों की नकल करने की बजाय हम अपनी खुद की अद्वितीय...
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