बचपन में कैंसर को हराया, अब उसी पर रिसर्च

रिसर्च स्कॉलर नित्या मोहन जब मात्र सात साल की थीं, तब उन्हें कैंसर का सामना करना पड़ा। लेकिन समय पर इलाज, परिवार के सहयोग और खुद के हौसले ने कैंसर को हरा दिया। इतनी कम उम्र में कैंसर का मतलब एक छोटे बच्चे की समझ से परे था। लेकिन कैंसर के इलाज के दौरान की यादें नित्या के मन में इतनी गहराई तक समाईं कि बड़े होने पर भी उनके मन में कई सवाल उठते रहे, जैसे आखिर यह कैंसर है क्या? इसका कारण क्या होता है? क्या कोई ऐसी वैक्सीन नहीं है, जो कैंसर को होने से रोक सके? और इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने के लिए उन्होंने कैंसर पर रिसर्च करने का निश्चय किया। उनका वह इरादा इतना प्रबल था कि उसे हकीकत में बदलना ही पड़ा।वर्ष 2016 में उनका चयन जर्मन कैंसर रिसर्च सेंटर, हाइडलबर्ग, जर्मनी के लिए हो गया। जहां से इस समय वे कैंसर इम्यूनोथैरेपी में पीएचडी कर रही हैं